----------------------------------------------------
✍️ डॉ.
मो.
वासे ज़फ़र
दर्शन, विज्ञान और धर्म सभी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा होती है कि “ज्ञान का अंतिम स्रोत क्या है” (What is the ultimate source of knowledge)? यह प्रश्न ज्ञान की जिस शाखा से जुड़ा है उसे ज्ञानमीमांसा (Epistemology) कहा जाता है। इस प्रश्न ने कई दर्शन को जन्म दिया जिनमें अनुभववाद (Empiricism), तर्कवाद या बुद्धिवाद (Rationalism), तार्किक अनुभववाद (Logical Empiricism), रहस्योद्घाटनवाद ईश्वरोक्तिवाद, श्रुति प्रकाशवाद या श्रुतिवाद (Revelationism), अंतर्ज्ञानवाद (Intuitionism), अधिनायकवाद (Authoritarianism) आदि महत्वपूर्ण हैं। इन दर्शनों को लेकर दार्शनिकों में मतभेद होते रहे हैं। अनुभवजन्य विज्ञान (Empirical Sciences) जिसमें सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) एवं प्राकृतिक विज्ञान (Natural Sciences) की सभी शाखाएं शामिल हैं, केवल Empiricism में ही विश्वास रखते हैं जो कि अब Logical Empiricism या Positivism के नाम से जाना जाता है। यहाँ science और scientific method ही ज्ञान का अंतिम स्रोत माना जाता है, बाक़ी किसी भी दर्शन का वे सिरे से इंकार करते हैं।
धार्मिक लोग जिसमें हर धर्म के साथ इस्लाम के मानने वाले भी शामिल है, ज्ञान का अंतिम स्रोत ईश्वरोक्तिवाद या श्रुतिवाद (Revelationism) को ही मानते हैं। इस्लाम की विशेषता यह है कि यहाँ ज्ञान का अंतिम स्रोत तो अल्लाह-ईश्वर को ही माना जाता है अर्थात यह Revelationism को support करता है लेकिन यह दूसरे सभी स्रोतों को भी नहीं नकारता है बल्कि यह बताता है कि सब के क्षेत्र अलग अलग हैं और उन्हें उनमें ही उपयोग करना चाहिए। मिसाल के तौर पर Empirical Sciences जो Logical Empiricism में विश्वास रखती है, का क्षेत्र Natural एवं physical world है, उससे परे नहीं, तो उसे उसी क्षेत्र में रहना चाहिए। Metaphysical, Spiritual और Moral world में विज्ञान को दख़ल ही नहीं देना चाहिए क्योंकि यह उसका domain ही नहीं है, उसका domain केवल observable world है। Metaphysical entities जो observable ही नहीं, उनके बारे में विज्ञान वालों को कोई भी विचार देने से पहले सोचना चाहिए। इसी तरह ज्ञान के दूसरे स्रोंतों का भी हाल है।
सबसे पहले देखिये कि क़ुरआन ज्ञान के अंतिम स्रोत (ultimate source) को कैसे प्रदर्शित करता है:
اِقۡرَاۡ
بِاسۡمِ رَبِّکَ الَّذِیۡ خَلَقَ ۚ﴿۱﴾ خَلَقَ الۡاِنۡسَانَ مِنۡ عَلَقٍ ۚ﴿۲﴾
اِقۡرَاۡ وَ رَبُّکَ الۡاَکۡرَمُ ۙ﴿۳﴾ الَّذِیۡ عَلَّمَ بِالۡقَلَمِ ۙ﴿۴﴾ عَلَّمَ
الۡاِنۡسَانَ مَا لَمۡ یَعۡلَمۡ ؕ﴿۵﴾
यह वो आयतें है जो पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सबसे पहले reveal हुई हैं। इसमें यह संदेश है कि क़ुरआन समेत जो कुछ भी पढ़ो अपने रब और पालनहार के नाम से ही पढ़ो जिसने क़लम के माध्यम से इंसान को वो सब कुछ सिखाया जो वह नहीं जानता था। क़लम पर मुख्य रूप से ध्यान आकर्षित करने के पीछे यह कारण है कि क़लम ज्ञान के संरक्षण, उसके प्रचार-प्रसार एवं अगली पीढ़ियों तक उसके संप्रेषण में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। लेकिन इन सब के बावजूद यह एक instrument है, असल ज्ञान देने वाला अल्लाह-ईश्वर ही है।
आदम अलैहिस्सलाम जो इस धरती पर पहले इंसान हैं जिन्हें Indian Scriptures में “मनु” कहा गया है, उनकी चर्चा करते हुए क़ुरआन ने कहा है कि उन्हें जब इस धरती पर भेजा गया तो यहाँ मौजूद सभी चीज़ों के नाम उनके गुणों के साथ उन्हें बता दिए गए:
وَ عَلَّمَ
اٰدَمَ الۡاَسۡمَآءَ کُلَّہَا ثُمَّ عَرَضَہُمۡ عَلَی الۡمَلٰٓئِکَۃِ ۙ فَقَالَ
اَنۡۢبِئُوۡنِیۡ بِاَسۡمَآءِ ہٰۤؤُلَآءِ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ ﴿۳۱﴾
قَالُوۡا سُبۡحٰنَکَ لَا عِلۡمَ لَنَاۤ اِلَّا مَا عَلَّمۡتَنَا ؕ اِنَّکَ اَنۡتَ
الۡعَلِیۡمُ الۡحَکِیۡمُ ﴿۳۲﴾ قَالَ یٰۤاٰدَمُ اَنۡۢبِئۡہُمۡ بِاَسۡمَآئِہِمۡ ۚ
فَلَمَّاۤ اَنۡۢبَاَہُمۡ بِاَسۡمَآئِہِمۡ ۙ قَالَ اَلَمۡ اَقُلۡ لَّکُمۡ اِنِّیۡۤ اَعۡلَمُ غَیۡبَ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ۙ وَ
اَعۡلَمُ مَا تُبۡدُوۡنَ وَ مَا کُنۡتُمۡ تَکۡتُمُوۡنَ ﴿۳۳﴾
“और आदम को (अल्लाह ने) सारे (वस्तुओं के) नाम सिखा दिये, फिर उनको फ़रिश्तों के सामने पेश किया और (उनसे) कहा- अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम तो बतलाओ ! वे बोल उठे ! आप ही की ज़ात पाक है, जो कुछ इल्म (ज्ञान) आपने हमें दिया है उसके सिवा हम कुछ नहीं जानते। हक़ीक़त में इल्म व हिक्मत (ज्ञान और बुद्धिमत्ता) के मालिक तो सिर्फ़ आप हैं। अल्लाह ने कहा- आदम! तुम इनको उन चीज़ों के नाम बता दो चुनाँचे जब उसने उनके नाम उनको बता दिये तो अल्लाह ने (फ़रिश्तों से) कहा क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन के भेद जानता हूँ? और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छुपाते हो मुझे उस सब का इल्म है।” [पवित्र क़ुरआन, सूरः अल-बक़रह 02: 31-33]
इस घटना के उल्लेख के पीछे की कहानी यह है कि जब ईश्वर-अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को वजूद में लाने का इरादा किया तो फ़रिश्ते जो इंसान से पहले की मख्लूक़ (जीव) हैं, उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया था कि इंसान को क्यों पैदा किया जा रहा है जबकि ईश्वर-अल्लाह की आराधना करने के लिए वे काफ़ी हैं। अल्लाह ने उन्हें इसकी हिकमत समझाने के लिए आदम अलैहिस्सलाम को सारी चीज़ों का ज्ञान दिया फिर फ़रिश्तों का परीक्षण लिया और उनसे सारी चीज़ों के नाम पूछे जो वे नहीं बता सके तथा अपनी अज्ञानता स्वीकार कर ली और यह भी कहा कि हमें तो उतना ही ज्ञान है जितना आपने हमें दिया है। उनके बाद जब आदम अलैहिस्सलाम से वही प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने सभी चीज़ों के नाम बता दिए, इस तरह ईश्वर-अल्लाह ने आदम की बरतरी (superiority) फ़रिश्तों पर स्थापित कर दी। इस घटना के चित्रण का मुख्य संदेश यही है कि ज्ञान का असल स्रोत ईश्वर-अल्लाह ही है। आदम की संतान के पास आज जो भी ज्ञान है उसका मूल रूप (fundamentals) उनके माध्यम से ईश्वर-अल्लाह से ही आया है। यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि “आदम” से “आदमी” शब्द और “मनु” से “मनुष्य” बना क्योंकि सब उनकी ही संतान हैं।
इसी तरह दूसरे स्थान पर क़ुरआन में यह फ़रमाया गया है:
اَلرَّحۡمٰنُ
ۙ﴿۱﴾ عَلَّمَ الۡقُرۡاٰنَ ؕ﴿۲﴾
خَلَقَ الۡاِنۡسَانَ ۙ﴿۳﴾ عَلَّمَہُ الۡبَیَانَ ﴿۴﴾
“वह रहमान ही है जिसने क़ुरआन की तालीम दी। उसी ने इंसान को पैदा किया। उसी ने उसको बात वाज़ेह (स्पष्ट तौर पर बयान) करना सिखाया।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः रहमान 55: 1-4]
यहां यह बताया गया है कि रहमान (अल्लाह-ईश्वर) ने ही क़ुरआन की शिक्षा दी है और उसी ने इंसान को पैदा भी किया है और उसी ने उसे स्पष्टता से बोलना सिखाया है।
ज्ञान के अंतिम स्रोत (ultimate source) को फ़ोकस करने के साथ ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) के माध्यम से प्राप्त ज्ञान को फ़ोकस करने के लिए देखिये क़ुरआन ने क्या कहा है?
وَ اللّٰہُ
اَخۡرَجَکُمۡ مِّنۡۢ بُطُوۡنِ
اُمَّہٰتِکُمۡ لَا تَعۡلَمُوۡنَ شَیۡئًا ۙ وَّ جَعَلَ لَکُمُ السَّمۡعَ وَ
الۡاَبۡصَارَ وَ الۡاَفۡئِدَۃَ ۙ لَعَلَّکُمۡ
تَشۡکُرُوۡنَ ﴿۷۸﴾
“और अल्लाह ने तुमको तुम्हारी माँ के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ नहीं जानते थे, और तुम्हारे लिये कान, आँखें और दिल पैदा किये, ताकि तुम (उसका) शुक्र अदा करो।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः अल-नहल 16: 78]
अर्थात ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ़ पैदा ही नहीं किया बल्कि तुम्हें Sense Organs भी दिये ताकि उन से ज्ञान एवं अनुभवों का संकलन करो और ईश्वर-अल्लाह का शुक्र अदा करो।
इसी तरह की आयत यह भी है:
قُلۡ ہُوَ
الَّذِیۡۤ اَنۡشَاَکُمۡ وَ جَعَلَ لَکُمُ السَّمۡعَ وَ الۡاَبۡصَارَ وَ
الۡاَفۡئِدَۃَ ؕ قَلِیۡلًا مَّا
تَشۡکُرُوۡنَ ﴿۲۳﴾
قُلِ انۡظُرُوۡا مَاذَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ؕ وَ مَا تُغۡنِی الۡاٰیٰتُ وَ النُّذُرُ عَنۡ قَوۡمٍ لَّا یُؤۡمِنُوۡنَ ﴿۱۰۱﴾
“(ऐ पैग़म्बर !) उनसे कहो कि ज़रा नज़र दौड़ाओ कि आसमानों और ज़मीन में क्या-क्या चीज़ें हैं? लेकिन जिन लोगों को ईमान लाना ही नहीं है उनके लिये (ज़मीन व आसमान में फैली हुई) निशानियाँ और आगाह करने वाले (पैग़म्बर) कुछ भी कारामद नहीं होते।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः यूनुस 10:101]
اِنَّ فِیۡ
خَلۡقِ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ وَ اخۡتِلَافِ الَّیۡلِ وَ النَّہَارِ
لَاٰیٰتٍ لِّاُولِی الۡاَلۡبَابِ
﴿۱۹۰﴾ۚ ۙ الَّذِیۡنَ یَذۡکُرُوۡنَ اللّٰہَ قِیٰمًا وَّ قُعُوۡدًا وَّ عَلٰی جُنُوۡبِہِمۡ
وَ یَتَفَکَّرُوۡنَ فِیۡ خَلۡقِ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ۚ رَبَّنَا مَا خَلَقۡتَ
ہٰذَا بَاطِلًا ۚ سُبۡحٰنَکَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ﴿۱۹۱﴾
ہُوَ
الَّذِیۡۤ اَنۡزَلَ مِنَ السَّمَآءِ مَآءً لَّکُمۡ مِّنۡہُ شَرَابٌ وَّ مِنۡہُ شَجَرٌ
فِیۡہِ تُسِیۡمُوۡنَ ﴿۱۰﴾ یُنۡۢبِتُ لَکُمۡ بِہِ الزَّرۡعَ وَ
الزَّیۡتُوۡنَ وَ النَّخِیۡلَ وَ الۡاَعۡنَابَ وَ مِنۡ کُلِّ الثَّمَرٰتِ ؕ
اِنَّ فِیۡ ذٰلِکَ لَاٰیَۃً لِّقَوۡمٍ یَّتَفَکَّرُوۡنَ ﴿۱۱﴾
“वही है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिससे तुम्हें पीने की चीज़ें हासिल होती हैं, और उसी से वे पेड़ (और पौधे) उगते हैं जिनमें तुम मवेशियों को चराते हो। उसी से अल्लाह तुम्हारे लिये खेतियाँ, जै़तून, खजूर के पेड़, अंगूर और हर क़िस्म के फल उगाता है। हक़ीक़त यह है कि इन सब बातों में उन लोगों के लिये बड़ी निशानी है जो ग़ौर-ओ-फ़िक्र करते (सोचते समझते) हों।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः अल-नहल 16: 10-11]
इसी तरह Metaphysical, Religious, Spiritual और Moral World में क़ुरआन ने Authority के रूप में पैग़म्बर साहब को पेश किया है:
ہُوَ
الَّذِیۡ بَعَثَ فِی الۡاُمِّیّٖنَ
رَسُوۡلًا مِّنۡہُمۡ یَتۡلُوۡا
عَلَیۡہِمۡ اٰیٰتِہٖ وَ یُزَکِّیۡہِمۡ
وَ یُعَلِّمُہُمُ الۡکِتٰبَ وَ
الۡحِکۡمَۃَ ٭ وَ اِنۡ کَانُوۡا
مِنۡ قَبۡلُ لَفِیۡ ضَلٰلٍ
مُّبِیۡنٍ ۙ﴿۲﴾
“वही है जिसने उम्मी (बिना पढ़े-लिखे) लोगों में उन्हीं में से एक रसूल को भेजा जो उनके सामने उसकी आयतों की तिलावत करें और उनको पाकीज़ा (पाक-साफ़) बनायें और उन्हें किताब और हिक्मत (समझ और दानाई) की तालीम दें, जबकि वे इससे पहले खुली गुमराही में पड़े हुए थे।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः जुमा 62: 2]
दूसरी जगह क़ुरआन ने यह कहा:
قُلۡ
اِنۡ کُنۡتُمۡ تُحِبُّوۡنَ اللّٰہَ فَاتَّبِعُوۡنِیۡ یُحۡبِبۡکُمُ اللّٰہُ
وَ یَغۡفِرۡ لَکُمۡ ذُنُوۡبَکُمۡ ؕ وَ اللّٰہُ غَفُوۡرٌ رَّحِیۡمٌ ﴿۳۱﴾ قُلۡ اَطِیۡعُوا اللّٰہَ وَ
الرَّسُوۡلَ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّ اللّٰہَ
لَا یُحِبُّ الۡکٰفِرِیۡنَ ﴿۳۲﴾
“(ऐ पैग़म्बर ! लोगों से) कह दो कि अगर तुम अल्लाह से मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुकरण) करो, अल्लाह तुम से मुहब्बत करेगा और तुम्हारी ख़ातिर तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। और अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला बड़ा मेहरबान है। कह दो कि अल्लाह और रसूल की इताअ़त (आज्ञा-पालन) करो, फिर भी अगर मुँह मोड़ोगे तो अल्लाह इंकार करने वालों को पसन्द नहीं करता।" [पवित्र क़ुरआन, सूरः आलि-इमरान: 31-32]
इस प्रकार क़ुरआन ने Sense Perception, Intellect या Reason, Revelation, Authority सबको ही सत्यापित किया है लेकिन ultimate source तो अल्लाह-ईश्वर को ही माना है।
इसी तरह वेदांत दर्शन में भी प्रत्यक्ष (Direct Perception), अनुमान (Logical Inferences), उपमां (Comparison or Analogy), अर्थपति (Derivations from Circumstances), अनुपलब्धि (Non-perception/ Cognitive proof), एवं शब्दा (Scriptural Testimonies) आदि को ज्ञान के स्रोत के रूप में पेश किया गया है।
बस समझने की बात यही है कि इन सारे स्रोतों का अपना अपना महत्व और अपना अपना क्षेत्र है,
समस्या तब होती है जब हम इसे नहीं मानते या एक दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण करते हैं।
*****
No comments:
Post a Comment