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✍️डॉ. मो. वासे ज़फ़र
पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (स.अ.व. अर्थात 'उनके ऊपर अल्लाह की सलामती और कृपा हो') के बारे में आम तौर पर लोगों के बीच यह अवधारणा पाई जाती है कि वह केवल मुसलमानों के पैग़म्बर हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा यह भी है कि पवित्र क़ुरआन केवल मुसलमानों का धार्मिक ग्रंथ है और उन्हीं के मार्गदर्शन लिए है। इन अवधारणाओं के कारण, बहुत से लोग पवित्र क़ुरआन, और पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) की शिक्षाओं से लाभ नहीं उठाते हैं जो हदीस (अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. के कथनों और कार्यों का विवरण) और सीरत (यानी पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. की जीवनी, चरित्र और जीवन शैली) की किताबों में संरक्षित हैं।
इसके अलावा, इन ही अवधारणाओं के कारण, कुछ लोग जो इस्लाम और पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. को सीधे तौर पर पवित्र क़ुरआन, हदीस की किताबों एवं अन्य प्रामाणिक स्रोतों से नहीं समझते हैं, वे पैग़म्बर साहब (स.अ.व.) के लिए ग़लत शब्दों का प्रयोग करते हैं और पवित्र क़ुरआन के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसा किसी भी धर्मग्रंथ के साथ नहीं होना चाहिए। इसीलिए उपरोक्त अवधारणाओं का पवित्र क़ुरआन के प्रकाश में आलोचनात्मक मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है।
जब हम पवित्र क़ुरआन का गहन अध्ययन करते हैं, तो देखते हैं कि यह धर्मग्रंथ कभी भी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) को केवल मुसलमानों का पैग़म्बर घोषित नहीं करता है, बल्कि यह उन्हें समस्त मानव जाति (humanity) का पैग़म्बर घोषित करता है। पवित्र क़ुरआन कहता है:
قُلۡ یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ اِنِّیۡ رَسُوۡلُ اللهِ اِلَیۡکُمۡ جَمِیۡعَا ۨ الَّذِیۡ لَہٗ مُلۡکُ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ۚ لَاۤ اِلٰہَ اِلَّا هُوَ یُحۡیٖ وَ یُمِیۡتُ ۪ فَاٰمِنُوۡا بِاللهِ وَ رَسُوۡلِہِ النَّبِیِّ الۡاُمِّیِّ الَّذِیۡ یُؤۡمِنُ بِاللهِ وَ کَلِمٰتِہٖ وَ اتَّبِعُوۡہُ لَعَلَّکُمۡ تَہۡتَدُوۡنَ ﴿الاعراف: ١٥٨﴾
(अर्थ): "(ऐ रसूल!) आप कह दीजिए कि ऐ इंसानों! मैं तुम सब की तरफ़ उस अल्लाह का भेजा हुआ रसूल (ईशदूत) हूँ जिसके क़ब्ज़े में तमाम (समस्त) आसमानों और ज़मीन की सल्तनत है। उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं है। वही ज़िन्दगी और मौत देता है। तो तुम अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान ले आओ जो नबी-ए-उम्मी (unlettered prophet) है, और जो अल्लाह पर और उसके कलिमात (शब्दों एवं आदेशों) पर ईमान रखता है, और उसकी पैरवी (अनुसरण) करो ताकि तुम्हें हिदायत (मार्ग-दर्शन) हासिल हो।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-आ'राफ़ 7: 158]
एक अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन कहता है:
وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ اِلَّا کَآفَّۃً لِّلنَّاسِ بَشِیۡرًا وَّ نَذِیۡرًا وَّ لٰکِنَّ اَکۡثَرَ النَّاسِ لَا یَعۡلَمُوۡنَ ﴿سبا : ٢٨﴾
"और (ऐ पैग़म्बर!) हमने आपको सारे ही इंसानों के लिये ऐसा रसूल (ईशदूत) बनाकर भेजा है जो ख़ुशख़बरी भी सुनाये और ख़बरदार भी करे, लेकिन अक्सर लोग समझ नहीं रहे हैं।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह सबा 34: 28]
एक और अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन का पैग़म्बर साहब (स.अ.व.) को यह पैग़ाम है:
وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ اِلَّا رَحۡمَۃً لِّلۡعٰلَمِیۡنَ ﴿الأنبياء : ١٠٧﴾
"और (ऐ पैग़म्बर!) हमने आपको सारे जहानों (संसार) के लिये रहमत (दया, कृपा, एवं करुणा) ही रहमत बनाकर भेजा है।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-अंबिया 21: 107]
उपरोक्त आयतों के प्रकाश में कोई भी शोधार्थी या बुद्धिजीवी आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि यह दृष्टिकोण कि पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) केवल मुसलमानों के लिए अल्लाह के दूत या पैग़म्बर हैं, बिल्कुल ग़लत है। मेरा मतलब है कि यह एक ग़लतफ़हमी या ग़लत अवधारणा है। हक़ीक़त यह है कि जो लोग उन्हें मानवता की तरफ़ अल्लाह के अंतिम दूत के रूप में स्वीकार करते हैं, उन्हें ही "मुसलमान" कहा जाता है जिसका अर्थ होता है 'आज्ञाकारी' (फ़रमाँबरदार)। इसलिए मुसलमान वास्तव में वे लोग हैं जिन्होंने स्वेच्छा से अल्लाह (ईश्वर) और पवित्र पैग़म्बर (स.अ.व.) के आदेशों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। जो लोग उपर्युक्त तथ्य को स्वीकार नहीं करते हैं वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि धर्म में कोई बाध्यता नहीं रखी गई है, लेकिन उनका दृष्टिकोण (रुख़) इस तथ्य को ख़ारिज नहीं करता है कि हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) नास्तिकों एवं अविश्वासियों सहित समस्त मानवता के पैग़म्बर हैं। हर दौर में दूसरे धर्मों के ज्ञानी लोग भी इस तथ्य को स्वीकार करते रहे हैं। भारत में भी सनातन संस्कृति से जुड़े कई ज्ञानी लोग पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. को ही कल्कि अवतार (अंतिम ईशदूत) मानते हैं, वही कल्कि अवतार जिनकी भविष्यवाणी भारतीय धर्मग्रंथों में की गई है। डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय जी जो भारतीय धर्म ग्रंथों के एक बड़े विद्वान हैं और देश की कई शिक्षण संस्थानों में अपना योगदान दे चुके हैं, अपने एक शोध पत्र जो अब एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित है, में लिखते हैं: "कल्कि और मोहम्मद साहब के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला, उसे देख कर यह आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे हो गये (अर्थात गुज़र गये) और वही मोहम्मद साहब हैं।" [कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, जम्हूर बुक डिपो, देवबंद, पृष्ठ 46]
इसी तरह, जब कोई पवित्र क़ुरआन के अपने बारे में किए गए दावों के बारे में तक़ीक़ात करता है, तो उसे पता चलता है कि यह ग्रंथ कभी भी ख़ुद को केवल मुसलमानों के मार्गदर्शन की किताब के रूप में पेश नहीं करता है, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए मार्गदर्शन की किताब के रूप में प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए यह आयत (verse) देखिए:
شَہۡرُ رَمَضَانَ الَّذِیۡۤ اُنۡزِلَ فِیۡہِ الۡقُرۡاٰنُ ہُدًی لِّلنَّاسِ وَ بَیِّنٰتٍ مِّنَ الۡہُدٰی وَ الۡفُرۡقَانِ ﴿البقرة : ١٨٥﴾
"रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन नाज़िल (अवतरित) किया गया, जो सरापा (पूर्णतया) हिदायत है इंसानों के लिए और ऐसी रोशन निशानियों का हामिल (यानी अपने अन्दर लिये हुए) है जो सही रास्ता दिखाती और हक़ (सत्य) व बातिल (असत्य) के दरिमयान दो-टूक फ़ैसला कर देती हैं।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-बक़रह 2: 185]
एक अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन अपने बारे में यह कहता है:
ہٰذَا بَلٰغٌ لِّلنَّاسِ وَ لِیُنۡذَرُوۡا بِہٖ وَ لِیَعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا هُوَ اِلٰہٌ وَّاحِدٌ وَّ لِیَذَّکَّرَ اُولُوا الۡاَلۡبَابِ ﴿إبراهيم : ٥٢﴾
"यह (क़ुरआन) तमाम (समस्त) इंसानों के लिये एक पैग़ाम है, और इसलिये दिया जा रहा है ताकि उन्हें इसके ज़रिये ख़बरदार किया जाये, और ताकि वे जान लें कि माबूदे बरहक़ (वास्तविक पूज्य) बस एक ही है, और ताकि समझ रखने वाले नसीहत हासिल कर लें।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह इब्राहीम 14: 52]
इसी तरह, पैग़म्बर साहब (स.अ.व.) को संबोधित करते हुए, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञानी अल्लाह (ﷻ) उनसे कहते हैं कि जो किताब आप पर अवतरित हुई है वह पूरी मानव जाति के लिए है और उसके संदेशों को पूरी मानवता को समझाना उनका कर्तव्य है। उदाहरण के तौर पर निम्नलिखित आयत का पाठ कीजिए और इस तथ्य को समझने का प्रयास कीजिए:
وَ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَیۡکَ الذِّکۡرَ لِتُبَیِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ اِلَیۡہِمۡ وَ لَعَلَّہُمۡ یَتَفَکَّرُوۡنَ ﴿النحل : ٤٤﴾
"और (ऐ पैग़म्बर!) हमने आप पर भी यह ज़िक्र (अर्थात क़ुरआन) इसलिये नाज़िल (अवतरित) किया है ताकि आप लोगों के सामने उन बातों को स्पष्ट तौर पर बयान कर दें जो उनके लिये उतारी गयी हैं, और ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र (सोच-विचार) से काम लें।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-नह्ल 16: 44]
एक अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन यह कहता है:
اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا عَلَیۡکَ الۡکِتٰبَ لِلنَّاسِ بِالۡحَقِّ ۚ فَمَنِ اہۡتَدٰی فَلِنَفۡسِہٖ ۚ وَ مَنۡ ضَلَّ فَاِنَّمَا یَضِلُّ عَلَیۡہَا ۚ وَ مَاۤ اَنۡتَ عَلَیۡہِمۡ بِوَکِیۡلٍ ﴿الزمر: ٤١﴾
"(ऐ पैग़म्बर!) हमने सब इंसानों के फ़ायदे के लिये तुम पर यह किताब हक़ (सत्यता) के साथ नाज़िल (अवतरित) की है। अब जो शख़्स सही रास्ते पर आ जायेगा वह अपनी ही भलाई के लिये आयेगा, और जो गुमराही इख़्तियार (चयन) करेगा वह अपनी गुमराही से अपना ही नुक़सान करेगा, और तुम उसके ज़िम्मेदार नहीं हो।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-ज़ुमुर 39: 41]
इतना ही नहीं, सर्वशक्तिमान अल्लाह (ﷻ) ने पूरी मानव जाति को सीधे तौर पर संबोधित करते हुए ख़ुद (स्वयं) कहा है कि पवित्र क़ुरआन वह पुस्तक है जिसमें उनके उत्कृष्ट मार्गदर्शन के लिए उनके परवर्दिगार के निर्देश शामिल हैं। उदाहरणार्थ निम्नलिखित आयत का अध्ययन किजीए:
یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَتۡکُمۡ مَّوۡعِظَۃٌ مِّنۡ رَّبِّکُمۡ وَ شِفَآءٌ لِّمَا فِی الصُّدُوۡرِ ۬ ۙ وَ ہُدًی وَّ رَحۡمَۃٌ لِّلۡمُؤۡمِنِیۡنَ ﴿يونس : ٥٧﴾
"ऐ इंसानों! यक़ीनन तुम्हारे पास तुम्हारे परवर्दिगार की तरफ़ से एक नसीहत आ गई है, और यह दिलों की बीमारियों के लिये शिफ़ा ('इलाज) है, और ईमान वालों के लिये हिदायत और रहमत का सामान है।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह यूनुस 10: 57]
एक अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन कहता है:
یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَکُمۡ بُرۡہَانٌ مِّنۡ رَّبِّکُمۡ وَ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَیۡکُمۡ نُوۡرًا مُّبِیۡنًا ﴿النساء : ١٧٤﴾
"ऐ इंसानों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तऱफ़ से खुली दलील (प्रमाण, सुबूत) आ चुकी है, और हमने तुम्हारे पास एक ऐसी रौशनी (क़ुरआन) भेज दी है जो रास्ते की पूरी वज़ाहत (स्पष्ट) करने वाली है।" [पवित्र क़ुरआन, सूरह अल-निसा' 4: 174]
उपरोक्त सभी आयतें इस ग़लत अवधारणा को दूर करती हैं कि पवित्र क़ुरआन केवल मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन की पुस्तक है, बल्कि यह इस तथ्य को स्थापित करती हैं कि यह संपूर्ण मानव जाति के लिए ईश्वरीय मार्गदर्शन की पुस्तक है, चाहे कोई इसे स्वीकार करे या न करे। यह एक अलग बात है कि इसके मार्गदर्शन का लाभ तो विशेष रूप से उन्हें ही होगा जो उसमें विश्वास रखेंगे और उसकी शिक्षाओं को अपनी ज़िंदगी में अपनाएंगे।
यहाँ एक बार फिर मैं डॉ. वेद प्रकाश उपाध्याय जी को उद्धरण (quote) करना चाहूंगा। वह लिखते हैं: "मोहम्मद साहब के द्वारा अभिव्यक्त क़ुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें, क्योंकि क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विधमान हैं, वही वेद में भी हैं।" [कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृष्ठ 41]
ज़ाहिर है कि जो ग्रंथ ईश्वरीय वाणी स्थापित हो चुकी हो, वह एक समुदाय विशेष के लिए नहीं हो सकती, वह तो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए ही होगी। तो जो लोग पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) के लिए ग़लत शब्दों का प्रयोग करते हैं या उन्हें अपमानित करने की कोशिश करते हैं, वे वास्तव में अपने ही पैग़म्बर के लिए अनजाने में ऐसा करते हैं। इसी प्रकार जो लोग पवित्र क़ुरआन के साथ बुरा सुलूक (व्यवहार) करते हैं, वे अनजाने में अपने ही ईश्वरीय धर्मग्रन्थ के साथ ऐसा करते हैं। चूँकि इस दुनिया में उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त है, वे आसानी से उपरोक्त कदाचारों को प्रदर्शित कर सकते हैं, लेकिन इसके बाद की दुनिया में जिसे आख़िरत (परलोक) कहा जाता है, उन्हें पछताना होगा और पश्चाताप करना होगा, लेकिन इसका कोई लाभ (फ़ायदा) उन्हें नहीं होगा क्योंकि अल्लाह (ईश्वर) को कोई भी पवित्र कार्य या अच्छा कर्म केवल इस दुनिया का ही स्वीकार्य है। स्वर्ग और नर्क का अंतिम निर्णय इस संसार में अपनाई गई आस्थाओं, मान्यताओं एवं कर्मों के आधार पर ही होना है। आख़िरत (परलोक) को देखने के बाद तो हर इंसान मोमिन (आस्तिक believer) बन जायेगा (क्योंकि वह सवर्ग-नरक सब कुछ वहां अपनी आंखों से देख लेगा) लेकिन इसका उसे कोई फ़ायदा नहीं होगा। बल्कि अफ़्सोस होगा, ईश्वर के सामने रोएगा, गिड़गिड़ाएगा और प्रार्थना करेगा कि उसे वापस दुनिया में भेज दिया जाए ताकि वह सही आस्थाओं एवं अच्छे कर्मों के साथ वापस आएगा लेकिन उसकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की जाएगी और उन्हें यही जवाब मिलेगा कि क्या हम ने तुम्हारे पास अपने पैग़म्बर नहीं भेजे थे और उन पर अपनी किताब अवतरित नहीं की थी लेकिन तुम ने सब को झुठलाया और मानने से इनकार किया तो लो आज अपने करतूतों का मज़ा चखो!
इसलिए जो लोग पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) या पवित्र क़ुरआन का अपमान करने की कोशिश करते हैं वे वास्तव में ख़ुद को ही नुक़्सान पहुंचा रहे हैं। उनके इस तरह के दुराचार से न तो पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) को कोई हानि पहुँच सकती है और न ही इस्लाम को कोई क्षति हो सकती है। उन्हें यह समझना चाहिए कि इस्लाम एक ईश्वरीय धर्म है और पवित्र क़ुरआन लाखों मुसलमानों के सीनों में महफूज़ (सुरक्षित) है। यह फ़ैसले के दिन तक अर्थात क़यामत तक अनिवार्य रूप से यथावत (ज्यों का त्यों) क़ायम रहेगा। जितना जल्दी उन्हें इसका एहसास होजाए, यह उनके ही हित और फ़ायदे में होगा। पवित्र क़ुरआन को जलाकर वे इस्लाम को इस दुनिया से मिटा नहीं सकते।
अंत में यह स्पष्ठ कर देना भी ज़रूरी है कि अगर किसी को यह संदेह हो कि मैं ने पवित्र क़ुरआन की आयतों का ग़लत अनुवाद कर के इसे पूरी मानवता के साथ जोड़ा है तो उन्हें 'अरबी के केवल एक शब्द "ناس" या "الناس" जिसे “नास”, "अल-नास" या "अन्नास" उच्चारित किया जाता है, का अर्थ किसी 'अरबी से इंग्लिश या हिंदी शब्दकोश में देख लें। उन्हें इसका अर्थ मिलेगा mankind, human kind, human race, human beings, humanity, people आदि जो मानव जाति के लिए अंग्रेज़ी में प्रयोग किये जाते हैं। [उदाहरण के लिए देखिये: Al-Mawrid Modern Arabic English Dictionary by Dr. Rohi Baalbaki, P. 1151].
यदि आप 'अरबी नहीं पढ़ सकते तो इतना तो कर ही सकते हैं कि उक्त शब्द के स्वरूप को अपने मस्तिष्क में बिठा कर ऊपर उद्धरित (quoted) क़ुरआन की आयतों में उसका मिलान कर लें, इस से भी आप को अंदाज़ा हो जाएगा कि वह शब्द वहाँ किसी न किसी रूप में मौजूद है और उसका अनुवाद ग़लत नहीं किया गया है।
आख़िर में ईश्वर-अल्लाह से प्रार्थना है वह हम सब को सद्बुद्धि दे और अपने पसंदीदा मार्ग पर चलने की इच्छा-शक्ति प्रदान करे। आमीन !
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